शाहीना ज़ैब उत्तर प्रदेश के उत्तरी भाग में पली बढ़ी हैं | छोटी उम्र होने के बावजूद वो जानती थी कि उसे स्कूल या विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए जाना हैं | हालांकि उसके गांव में सिर्फ मदरसा ही पढ़ाया जाता था | शाहीना ने भी 8 साल तक इसी में पढाई की | आगे चलकर उसे पब्लिक एडमिनिस्ट्रेटर की पढाई करने की ख्वाइश थी | ये जानते हुए भी की पता नहीं उसे एडमिशन मिले या न मिले |
सामाजिक दवाब और विरोध के बावजूद उसने विश्वविद्यालय में दाखिला के लिए अपने घर वालो को मना लिया | लेकिन एक ऐसी लड़की जिसने अपनी सारी पढाई मदरसा से की हो और वो भी अरेबिक या उर्दू भाषा में , उसके लिए विश्वविद्यालय का एंट्रेंस परीक्षा पास करना नामुमकिन के बराबर हैं | यहाँ तक कि कुछ विश्वविद्यालय तो मदरसा को मान्य सर्टिफिकेट भी नहीं मानते | इस सब कारणों की वजह से शाहीना ज़ैब का सपना अधूरी रह गई | ये कहानी सिर्फ शाहीना की नहीं हैं बल्कि उसके जैसे उन हजारो मदरसा बच्चो की हैं जो विश्वविद्यालय में दाखिला नहीं ले पाते और जिनका सपना अधूरा रह जाता हैं |
भारत में हर साल 350000 विद्यार्थी मदरसा से पढाई करके निकलते जिनमे ज्यादातर उच्च शिक्षा प्राप्त करने के योग्य नहीं होते | मदरसा सदियों से मुस्लिम वर्ग के बच्चो को शिक्षा देता आ रहा हैं | लाखो ऐसे बच्चे जो बाहर किसी निजी स्कूल में नहीं पढ़ सकते वो बच्चे अपनी सामान्य शिक्षा मदरसा से लेते आ रहे हैं | जहा एक तरफ शिक्षा का आधुनिकरण होता गया वही मदरसा अपने पुरे शिक्षा प्रणाली से बहार नहीं निकल पाया | और इसका नतीजा मदरसा में पढ़ने वाले लाखो बच्चो को उठाना पड़ा |
School Failure Raise Bridge Courses
इन सब बातो को ध्यान में रखते हुए और मदरसा के शिक्षा प्रणाली को आधुनिक शिक्षा प्रणाली से जोड़ने के प्रयास में 5 साल पहले ब्रिज कोर्सेस का निर्माण हुआ | अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने इसकी शुरुआत की | ब्रिज कोर्सेस में पोलिटिकल साइंस, इंग्लिश , और कानून की शिक्षा दी जाती हैं और विद्यार्थीओ को इस तरह से तैयार किया जाता हैं जिससे वो विश्वविद्यालय के एंट्रेंस एग्जाम पास कर सके | ये AMU के ही प्रयास का परिणाम था कि मदरसा के 500 से ज्यादा बच्चे अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में दाखिला ले पाए |
हालांकि कुछ धर्म के ठेकेदार इसका विरोध भी कर रहे हैं | कुछ मुस्लिम मौल्विओ का कहना हैं कि ये उनके धर्म के खिलाफ हैं कि बच्चे मदरसा से बाहर जाकर पढ़े | उन्हें इस बात की चिंता हैं कि कही बच्चे शिक्षा प्राप्त करने के बाद तर्क वितर्क करना न शुरू कर दे |
उन मौल्विओ को ये बात समझने की जरूरत हैं कि इससे निम्न वर्ग के समुदायों को और अच्छी शिक्षा प्राप्त होगी और उनके रोजगार के अवसर बढ़ेंगे |
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